Wednesday, 12 September 2018

जीवन अमूल्य

मगध सम्राट बिंदुसार ने एक बार अपनी सभा में पूछा, ‘देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है?’ मंत्री परिषद् तथा सभा के अन्य सदस्य सोच में पड़ गए। कुछ देर बाद शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा, ‘राजन, सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है।’ सभी ने सामंत की इस बात का समर्थन किया, लेकिन चाणक्य चुप थे। सम्राट ने उनसे पूछा, ‘आपका इस बारे में क्या मत है?’

चाणक्य ने कहा, ‘मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा।’ रात होने पर चाणक्य उस सामंत के महल पहुंचे। सामंत ने द्वार खोला। चाणक्य ने कहा, ‘शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गए हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्राएं ले लें।’ सामंत ने चाणक्य के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामंत के हृदय का मांस खरीद लें।

चाणक्य सुबह होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और राजा के समक्ष दो लाख स्वर्ण मुद्राएं रख दीं। सम्राट ने पूछा, ‘यह सब क्या है?’ तब चाणक्य ने बताया कि दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई, फिर भी दो तोला मांस नहीं मिला। ‘राजन, अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है? जीवन अमूल्य है। जैसे हमें अपनी जान प्यारी है, बाकी सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वे अपनी जान बचाने में असमर्थ हैं। पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं। तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाए?’

श्री गणेश

आज मैं अपना ब्लॉग चालू कर रहा हूं।कहते है कुछ अच्छा काम शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी का आशीर्वाद होना चाहिए और उन्हीं की कृपा दृष्टि से आज से ये चालू कर रहा हूं।कल बाप्पा का आगमन है। गणपती बाप्पा मोरया।
दोस्तो बहुत दिनों से आपके बिचमे आने की सोच रहा था।पर समय निकाल नहीं पा रहा था।काम घर परिवार इनमें ही बिजी रहना पड़ता है।आज आज करके समय निकलता ही है।जो कभी किसी के लिए ठहरता नहीं है।
और हम अपने काम में इतने व्यस्त होते है कि हमें पता ही नहीं चलता हमें रुकना कब है।जाना कहा है।बस कर्म करते ही जाते है।
इस बीच डिप्रेशन सिर उठा था है। नैराश्य आता है।
ये हम सब को हर घड़ी झेलना ही पड़ता है।कोई ये नहीं कह सकता कि मै हर रोज आनंद से जी रहा हूं।
क्यूंकि रेल जैसे एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन चलती रुकती चलती रुकती है वैसे कुछ अपने जीवन में भी अपने साथ होता है।ठहराना चलना फिर ठहराना चलना इस में हम अपने आपको उलझाते रहते है।
लेकिन अपने आपको भी समय देना ये काम हमें करना चाहिए ये भूल जाते है।
पैर कमाओ और कमाओ पर हमें अपने आपको अपने परिवार को मित्रो को समय देना अपने अपने अच्छी अनुभूति लती है।इस पर मेरा ये मंथन ब्लॉग है।
आज मै इतना ही कहता हू।मंथन में मै जीवन की अनुभूति नैराश्य से मुक्ति पोजिटिव सोच।नकारात्मक विचारों से आज़ादी के बारे में कुछ चीजें जरूर लना चाहता हूं जो आगे लाऊंगा।
आप अपने सुझाव विचार जरूर दीजियेगा।
क्यूंकि संवाद ऐसी शक्ति है जो हमें अपने मन की बाते बाहर लाकर मनको विचलित होने से बाहर लाते है।लेकिन शर्त ये है कि संवाद उर्जात्मक हो।
जय हिन्द