मगध सम्राट बिंदुसार ने एक बार अपनी सभा में पूछा, ‘देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है?’ मंत्री परिषद् तथा सभा के अन्य सदस्य सोच में पड़ गए। कुछ देर बाद शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा, ‘राजन, सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है।’ सभी ने सामंत की इस बात का समर्थन किया, लेकिन चाणक्य चुप थे। सम्राट ने उनसे पूछा, ‘आपका इस बारे में क्या मत है?’
चाणक्य ने कहा, ‘मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा।’ रात होने पर चाणक्य उस सामंत के महल पहुंचे। सामंत ने द्वार खोला। चाणक्य ने कहा, ‘शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गए हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्राएं ले लें।’ सामंत ने चाणक्य के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामंत के हृदय का मांस खरीद लें।
चाणक्य सुबह होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और राजा के समक्ष दो लाख स्वर्ण मुद्राएं रख दीं। सम्राट ने पूछा, ‘यह सब क्या है?’ तब चाणक्य ने बताया कि दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई, फिर भी दो तोला मांस नहीं मिला। ‘राजन, अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है? जीवन अमूल्य है। जैसे हमें अपनी जान प्यारी है, बाकी सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वे अपनी जान बचाने में असमर्थ हैं। पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं। तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाए?’
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